Thursday 13 September, 2012

तेरा नाम लेकर...

गिरती हुई शाम को
कितनी बार संभाला है
रात में डूब डूब कर
न जाने कितनी बार सुबह को निकाला है

अंधेरे से डरते हुए चाँद को
कितनी बार
फलक पे टिकाकर सुलगाया है
थके हुए सूरज को
बादलो की चादर उडाकर
न जाने कितनी बार सुलाया है

जब जब भी कांपी है ये कायनात
जब जब भी घबराए है दिन-रात
मैंने तेरा नाम लेकर इनके वजूद को बचाया है...

मजबूरी...

तू मेरी है मैं तेरा हूँ
फिर भी सनम क्यूँ ये दूरी है

तू पास है मेरे,
मेरे साथ है तू
फिर भी क्या मजबूरी है

तुम कहो जो भी कहना है
लेकिन चुप रहना भी ज़रूरी है

हम साथ है तो ये जहाँ है हँसी
वरना ये दुनिया भी अधूरी है
तू मेरी है मैं तेरा हूँ ....

जिन्दगी मेँ...

बहुत से बहाने है
ज़िन्दगी में,
न जाने कितने

और रिश्ते भी तो है
देश-विदेश के,
और बहुत सारे किस्से है,

समाज कि ऊँची-नीची
छोटी बड़ी न जाने कितनी बातें है
मगर फिर भी न जाने क्यूँ,

जब कुछ भी लिखने बैठता हूँ
तो सिर्फ ज़िक्र तेरा ही होता है
और  मेरी हर नज़्म,

 तेरे नाम से शुरू होकर
तुझपे ही ख़त्म होती है
कितना बेबस सा हूँ मैं .....

युवा बेटी ...


जवानी की दहलीज पर
कदम रख चुकी बेटी को
माँ ने सिखाये उसके कर्तव्य
ठीक वैसे ही
जैसे सिखाया था उनकी माँ ने
पर उन्हें क्या पता
ये इक्कीसवीं सदी की बेटी है,


जो कर्तव्यों की गठरी ढोते-ढोते
अपने आँसुओं को
चुपचाप पीना नहीं जानती है
वह उतनी ही सचेत है
अपने अधिकारों को लेकर
जानती है,


स्वयं अपनी राह बनाना
और उस पर चलने के
मानदण्ड निर्धारित करना।

मेघा...


बरसों मेघा,बरसों मेघा
आज धरा ये प्यासी है
नील-गगन में,नील-गगन में
क्यूँ छाई गहरी उदासी है ।

झोंका पवन का आने से
पत्ता कोई शर्माता है
प्यार बरसा कर इस धरा पर
देख गगन मुस्काता है ।

भीगा फिरसे आज वो बचपन
यादों की इस बारिश में
बरसों बाद ख़ुद से मिला हूं
सावन भी है इस साजिश में ।

नीचे लिखीं कुछ पंक्तियाँ मेरे पापा के लिए जो न होकर भी मेरे साथ हैं
कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में...

नयन मेरे नम पड़े हैं
पहली इस बरसात में
हमसे दूर गए,वो बिछडे मिले हैं

बूंदों की सौगात में ।

Thursday 19 April, 2012

मृगतृष्णा...


बसंती बयार  सा
खिले  पुष्प सा  
उस अनदेखे साए ने
भरा दिल को        
प्रीत की गहराई से,

खाली सा मेरा मन  
गुम हुआ हर पल उस में
और  झूठे भ्रम को      
सच समझता रहा ,      

लेकिन....

 भ्रम तो आखिर भ्रम होते है

मृगतृष्णा बन जाता  जीवन
भटकता रह्ता न जाने किन राहों पर
दिल में लिए झरना अपार स्नेह का
 यूं ही निर्झर  बहता रह्ता है,    


लेकिन.....
यह मेरा मन भी तो ना,
बस,  पगला है

  न जाने किस थाह को
पाने की विकलता में
गहराई  में उतरता रह्ता है,

प्यासा मनवा,

 खिचता रह्ता है ...
उस और ही
जिस ओर पुकारती है
मरीचिका ...
पानी के छदम वेश में,

किया भरोसा जिस भ्रम पर
वही जीवन को छलती रह्ती है...

Monday 12 September, 2011

तेरा देखना

यूँ न मुझ को देख तेरा दिल पिघल न जाये,
मेरे आंसुओ से तेरा दामन जल न जाये।

वो मुझ से फिर मिला है आज खाव्वाबों में,
ऐ खुदाया कहीं मेरी नींद खुल न जाये।

पूछा न कर सब के सामने मेरी कहानी,
कहीं तेरा नाम होटों से निकल न जाये।

यूँ न हँस के दिखा दुनिया को ,
कहीं दो आँसू निकल न जाए ।

जी-भर के देख ले हम तुम को सनम
क्या पता फिर ज़िन्दगी-ए-वसन्त  किस राह पे ले जाये ।

Tuesday 4 January, 2011

रिश्ता सा जुड़ जाए...

अपने हाथ को दे दो
मेरे हाथो में ऐसे
कि रिश्ता सा एक जुड़ जाए
तेरी साँसों का कतरा कतरा
मेरी नस नस में घुल जाए
इतना करीब मेरे आ जाओ
जुड़ जाओ मुझसे ऐसे
कि जब भी मैं खोलूं
आंखे अपनी
बस एक तेरा चेहरा ही नज़र आए
मुझमे मिल जाओ तुम कुछ ऐसे
कि मेरे इस जिस्म को
वो रूह मिल जाए
जिसके लिए न जाने कब से
तरस रहा हूँ तड़प रहा हूँ
न जाने कब से
एक कोरा कागज़ सा
मैं गलियां गलियां घूम रहा हूँ
न जाने कितनी सदियों से
मैं बस तुझको ढूंढ रहा हूँ
आज मिले हो तो बस
एक बार ऐसे मिल जाओ
मेरी इन साँसों को तेरी खुशबू मिल जाए
और जो मेरी तनहा सी ज़िन्दगी है
इसको तेरी आँखों का चाँद मिल जाए॥!
************************* VASANT

मेरी आरज़ू

ये आरजू हीं रही हमको भी चाहे कोई,
कभी तन्हाई में नयनों से बुलाये कोई ..

गर हवा तेज़ चले और बिखर जाऊं मैं,
मुझे पलकों से चुन चुन के उठाये कोई ..

गर कभी साँझ ढले तारों की बारात सजे ,
चाँद बनकर मेरी पहलू में सिमट आये कोई..


मै फरिस्ता तो नही,गलतियाँ भी मुमकिन हैं,
पहले शिकवा करे फिर सीने से लग जाये कोई..

जब कभी गर्दिश -ए -दौराँ से हौसला हारूँ ,
हर दफा ख्वाब नया मुझको दिखाए कोई ..!
***************************** VASANT

मेरा ख्वाब ...

गर रूठूं भले मनाना ना
पर दूर भी मुझसे जाना ना ,
हाँ रंग - बिरंगे ख्वाबो से
सोते अरमान जगाना ना ..!!

एक आश का दीपक है मन में
नित सहमा - सहमा जलता है ,
गर ओट ना दो इसे आँचल की
तुम प्रियेतम इसे बुझाना ना ..!!

ये मौन तेरा जान -ए -जानां
मुझको इकरार ही लगता है ,
औ इसी भरम में मैं खुश हूँ
तुम सच्ची बात बताना ना ..!!

एक सुनी बगिया है मन की
एक दर्द का गहरा सागर है ,
तेरी याद की तन्हा महफ़िल है
देखो तुम शोर मचाना ना ॥!!
*************** VASANT

Friday 5 February, 2010

मन ...

सपनों की सुन्दर बगिया में
किसे ढूंढता रहता मन
विचारों के आकाश में
भावनाओं के समंदर में
संवेदना के मर्म क्षणों में
किसे ढूंढता रहता मन
सपनों कि सुन्दर बगिया में
किसे ढूंढता रहता मन ।

सहसा उत्साहित हो जाता
पलभर में दुःख से भर जाता
प्रेम और उमंग का सागर
क्यों नैनों से छलकाता मन
सपनों कि सुन्दर बगिया में
किसे ढूंढता रहता मन ।

किसको ठहराऊॅ जिम्मेदार मैं
जिसको मैने कभी न देखा
पर शायद होना है इकदिन
उस सुन्दर प्रतिमा का दर्शन
क्यों ऐसे स्वप्निल आश्वासन
मुझको देता रहता मन
सपनों कि सुन्दर बगिया में
किसे ढूंढता रहता मन ।

मैंने भी अब सोच लिया है
मन कि बात न मानूंगा
स्वप्न दिखाए चाहे जितना
उसके पीछे न भागूँगा
पर अगले ही क्षण देखूं "सपना"
उस दिन शायद पूरी होगी
ये अभिलाषा मेरे मन की
जिस दिन एक सुन्दर सी प्रतिमा
उतरेगी यथार्थ के आँगन
शायद ये वों मूरत होगी
जिस पर लट्टू मेरा मन
सपनों कि सुन्दर बगिया में
किसे ढूंढता रहता मन ।
************ VASANT